जमाना भले ही कितनी भी तरक्की कर ले,
माना लोग कहते है कि लड़के लड़की में कोई फर्क नही है
पर ये वाक्य लगभग हर लड़के ने कभी ना कभी महसूस जरुर किया होगा।
मर्द को दर्द नहीं होता ये
यही बात सुनी है जमाने से
हुकुम है कोई या है कोई बंदिश
यही नापता हूं पैमाने से।
लड़के हो तुम रो नहीं सकते
बस यही बात चुभती है
क्यू ये नियम बना मेरे लिए
हर समय खालिश सी रहती है।
सोचता हूं कब समझेंगे लोग
की मुझमें भी जज़्बात है
मर्द हूं तो क्या हुआ
हम भी तो इंसान है।
पढ़ोगे नहीं तो घर कैसे चलेगा
यह बात कहीं थी पापा ने
लड़के हो तुम जिम्मेदार बनो
अब लग जाओ काम पे।
शायर बनना चाहता था में
पर शायरी मेरी छूट गई
कलम ने भी साथ छोड़ा
लगा जिंदगी मेरी रूठ गई।
सपने कुछ मैंने दफन किए
कुछ ख्वाहिशें दम तोड गई
मर्द हो तुम याद रखना
ये बात ही बेडिया बन गई।
कोई नहीं जानता कितने ख़यालो को
अल्फाजों में पिरोकर
डायरी में महफूज रखा है
के किसी ने कोशिश ही नहीं की कभी मेरे करीब आने की।
Pratiksha Singh, Student of Humanities, Nagpur